Thursday, January 8, 2009

रक्त रंजित फिलिस्तीन.....

नए साल (२००९) के स्वागत में एक तरफ़ जहाँ सारी दुनिया जश्न मना रही है, लोग एक दुसरे को बधाइयां दे रहे हैं, मोबाइल और इन्टरनेट पर शुभकामनाओं के संदेश भेजे जा रहे हैं, वही दूसरी तरफ़ दुनिया के नक्शे पर खाडी छेत्र का एक छोटा सा देश फिलिस्तीन खून से लहुलुहान है, इसके निहत्थे अवाम को रात भर इस्राइली विमान टनों वजनी बमों का तोहफा दे रहे थे, सुबह उनके हांथों में २ साल से लेकर १५ साल तक के मासूमों की लाशें थीं। दरअसल, गत २७/१२/२००८ को सीज फायर की मियाद पुरा होते ही उसके पड़ोसी देश इस्राइल ने अपने बमवर्षक विमानों और गनशिप हेलीकॉप्टरों द्वारा उसपर ७०० से ज़्यादा हवाई हमले किए और ज़बरदस्त बमबारी की,ये हमले ज्यादातर रिहाईशी इलाकों में किए गए,नतीजतन अभी तक ६०० से भी ज़्यादा शहरी मारे गए, इनमे भी बच्चों की संख्या अधिक थी वहां रोज़ छोटे छोटे कब्रों की तादाद बढ़ रही है एक फिलिस्तीनी ख़बर के मुताबिक इस्राइल ने इस बार रसायेनिक हथियारों का भी उपयोग किया जिससे वहां खतरनाक बीमारियाँ फैल रही हैं, ७-८ दिनों तक हवाई हमले के बाद अब ज़मीनी हमले भी किए गए, इस्राइल खाडी छेत्र का यहूदी आबादी वाला एक ऐसा गैर-मुस्लिम देश है जो अपने चारों तरफ़ मुस्लिम देशों से ही घिरा हुआ है, आर्थिक दृष्टि से बहोत ही सुखी संपन्न इस देश का साइंस एंड टेक्नोलॉजी में भी कोई मुकाबला नही, इसकी कृषि वयवस्था तो सारी दुनिया में एक मिसाल है, जहाँ तक इसके सैन्य शक्ति का सवाल है तो सारे अरब देश एक साथ मिलकर भी इसपर हमला कर दें तो भी इसका बाल बांका न कर सकें,उधाराह्स्वरूप १९६४ या ६७ में इसके सभी पड़ोसी देशों से इसका युद्ध हो गया, यह युद्ध लगभग ६ दिनों तक चला इसने मात्र एक दिन में ही मिस्र और जोर्डन के करीब ७५ लड़ाकू विमानों को मार गिराया, और उनके कुछ ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया, बाद में इसने मिस्र की ज़मीन तो लौटा दी मगर जोर्डन के गोलन पहाडी को नही लौटाया और उसे अपना बफ़र ज़ोन बना लिया, इसतरह इसने सिर्फ़ ६ दिनों में ही अपने प्रतिद्वंदियों को परस्त कर दिया, यह अपने वजूद में आने के बाद से ही फिलिस्तीन पर ऐसे अत्याचार, हमले और कारवाइयां करता आया है, इसकी हरेक करवाई पर दुनिया के ठेकेदार अमेरिका और उसके यूरोपीय मित्र देशों का पुरा पुरा समर्थन रहता है, अमेरिका की इसी करतूत पर कहने वाले ने भी खून कहा है की " जेनोसाईद इन गाजा : मेड इन यु.एस.ऐ।" बेशर्मी तो तब हो जाती है जब इस्राइल की अत्याचारी हरकतों के लिए भी फिलिस्तीन को ही जिम्मेदार ठहरा देते हैं, उस फिलिस्तीन को जिसकी इस्राइल के आगे कोई औकात नही, जो दाने दाने का मोहताज है, चलिए - यह सब बातें तो प्रेसेंट (वर्तमान) की हो गयीं, अब थोड़ा हमलोग पास्ट (भूतकाल) की तरफ़ वापस चलते हैं, आप सभी को १९९१ की एक घटना याद होगी, खाडी छेत्र के ही एक देश इराक के राष्ट्रपति स्वर्गीय सद्दाम हुसैन ने अपनी ज़िन्दगी की एक भारी ग़लती की थी, उन्होंने भी अपने पड़ोसी कुवैत पर हमला किया और लगभग उसपर कब्ज़ा कर लिया, उनकी इस हरकत का पुरजोर विरोध अमेरिका और उसे मित्र देशों ने किया, उन्हें फटाफट एक अल्टीमेटम दिया गया के वह जल्द से जल्द कुवैत की सीमा से बाहर निकल जायें वरना उनके ख़िलाफ़ बल प्रयोग किया जाएगा, उनहोंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की भी बात नही मानी, और अपनी हठधर्मिता के साथ जिद पर अडे रहे फिर एक बहुराष्ट्रीय सेना का गठन हुआ और इराक पर ज़बरदस्त सैन्य कारवाई कर के कुवैत को आज़ादी दिला दी गयी, सद्दाम हुसैन को अपनी ग़लती का भारी खामियाजा भुगतना पड़ा, आज इस्राइल भी ठीक वैसी ही ग़लती कर रहा है, उसने एक बार नही बार बार ऐसी ग़लती की है, फिलिस्तीन की सीमा में घुस कर उसपर कब्ज़ा किया और वहां अपने लिए यहूदी बस्तियां भी बसा रहा है, लेकिन अमेरिका के साथ साथ पुरा अन्तरराष्ट्रीय समुदाय भी चुप है, क्या इस्राइल के साथ भी इराक जैसी कारवाई हो सकती है और फिलिस्तीन को आज़ादी दिला कर उसकी ज़मीन लौटाई जा सकती है ? तो इसका भविष्य यह है की = जी नही, बिल्कुल नही, ऐसा कभी नही हो सकता, ये मेरी अपनी भविष्यवाणी है, क्योंकि, इस्राइल तो इन्ही यूरोपीय देशों की और अमेरिका की ही पैदावार है, क्योंकि इन्होंने ही इस्राइल को वहां का थानेदार बना रखा है जिसका डर और खौफ दिखा कर वे वहां अपना स्वार्थ पुरा कर रहे है, वहां के तेल (पेट्रोल) पर अपरोक्ष रूप से कब्ज़ा जमाये बैठे हैं, वे वहां इस्राइल के ख़िलाफ़ ऐसी कोई कारवाई नही करेंगे चाहे इससे फिलिस्तीन की ज़मीन लाल होती है तो होती रहे वहां के बच्चे खून में नहाते है तो नहाते रहे उससे उनको क्या : उनकी to बल्ले बल्ले है.......

Saturday, December 20, 2008

हंगामा क्यूँ है बरपा. ..................

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री श्री अब्दुर्रहमान अंतुले साहब ने दो-तीन दिन पहले सदन में मुंबई में जो आतंकवादी घटना हुई जिसमें हमारे एक इमानदार और जांबाज़ ऑफिसर हेमंत करकरे और उनके तीन साथी शहीद हो गए इसपर अपना संदेह प्रकट किया और मांग की के उसकी अलग से जाँच होनी चाहिए, अब क्या था सदन में तो जैसे हंगामा हो गया, बी.जे.पी और शिवसेना ने तो आसमान सर पर उठा लिया, काहे भइया ऐसा क्या पूछ दिया श्रीमान अंतुले जी ने, हेमंत करकरे जब पुरी ईमानदारी से मालेगांव ब्लास्ट की जाँच कर रहे थे जिससे हिंदू आतंकवाद का नया चेहरा पुरी दुनिया के सामने आ रहा था तब ये आप ही लोग तो थे जो शहीद हेमंत करकरे की जाँच को लेकर उनका फजीहत कर दिए थे, एक बात और जब इसी आतंकवादी घटना में एक और जांबाज़ जवान शहीद उन्नीकृष्णन के घर पर उन्ही गृह राज्य के मुख्यमंत्री जी ने जो अपशब्द कहे जिसे सारा हिंदुस्तान जानता है तब आपने आसमान सर पर क्यों नही उठाया, ऐसा नही है की जो बातें अंतुले साहब के जेहन में है वोह सिर्फ़ उन्ही तक है, यह बातें लगभग हर सेकुलर समझ वाले हिन्दुस्तानी के जेहन में भी है फर्क सिर्फ़ इतना है के कोई इसको बोलने की हिम्मत करता है और कोई नही करता।

मैं तो सिर्फ़ अंतुले साहब से इतना कहूँगा के वो सरकार से (केन्द्र और महाराष्ट्र) और इसमे बीजेपी और शिवसेना के लोग भी शामिल हों यह मांग करें की अब एक नए ऐ.टी.एस चीफ को बहाल करें जो स्वर्गीय हेमंत करकरे जैसा इमानदार हो और पुरी इमानदारी से उनकी जाँच को आगे बढाये, इसमे कोई राजनितिक हस्तक्षेप न हो, और उनकी सुरक्षा का भी इन्तेजाम पुरा हो, अगर यह मांग मान ली गई तो मैं समझूंगा की अंतुले साहब का संदेह बेमानी है और उनको माफ़ी मांग लेनी चाहिए, लेकिन सरकार अगर यह बात नही मानती है तो इसका मतलब दाल में कुछ काला है ...........

Tuesday, December 16, 2008

बुश को जूते मारे..........

दिन सोमवार, दिनाक : १५/१२/२००८, समय सुबह के करीब आठ से साढेआठ बजे मैं अपने रोज़ की दिनचर्या के मुताबिक चाय की चुस्की के साथ टी.वी देख रहा था की अचानक एक खबरिया चैनल (न्यूज़ २४) पर यह ख़बर देख कर मैं हैरान रह गया की किसी ने जॉर्ज बुश (अमेरिकी राष्ट्रपति) को जूता फ़ेंक कर मारा और वह भी दो दो बार मैं करीब ५ से ७ मिनट तक (जब तक यह न्यूज़ चलता रहा) इस न्यूज़ को देखता रहा तो बात पुरी स्पष्ट हुई, भाई साहब (जॉर्ज बुश) इराक गए हुए थे और वहां एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे इसी बीच एक टीवी पत्रकार मुन्त्दर अल जैदी ने उनको दो जूते मारे पहला जूता यह कहकर फेंका की "यह इराकी लोगों की ओर से आखरी सलाम" और दूसरा जूता "यह इराकी विधवाओं, अनाथों और मारे गए लोगों की तरफ़ से" यह ख़बर आज १६/१२/२००८ को हिदुस्तान हिन्दी दैनिक में भी छपा

अब सवाल यह उठता है की यह कितना उचित है तो मैं कहूँगा की भले ही यह लोकतंत्र की दृष्टि में सही नही है मगर यह तो होना ही था क्योंकि जिस तरह का झूठा बहाना बनाकर की इराक के पास जनसंहार वाले घातक हथियार हैं इराक पर , उसकी ज़मीन पर और उसकी संप्रभूता पर हमला किया गया उसी समय यह तय हो गया था की ऐसा ही कुछ होगा, और आज जो हुआ वह बुश के लिए ज़िन्दगी का सबसे शर्मनाक दिन साबित हुआ। इस जंग में हजारों बेक़सूर लोग मारे गए, इराक पर हजारों टन बारूद गिराने के बाद बुश साहब ने कबूल किया के जिस घातक हथियार के लिए हमने ये जंग लड़ी वो रसयेनिक हथियार वहां नही मिले, और हाल के दिनों में तो उनहोंने यहाँ तक कबूल किया के उनके सलाहकारों ने इराक पर हमले के लिए उन्हें ग़लत सलाह दिया था। इराक पर हमले के वक्त तो मुझे लगा था की इराकियों का स्वाभिमान ख़तम हो गया है लेकिन कल के न्यूज़ से मैं समझ गया की नही स्वाभिमान जिंदा है, बुश गुनाहगार हैं सिर्फ़ इराकी जनता के नही वो गुनाहगार हैं दुनिया के सारे मुसलामानों के क्योंकि बगदाद पुरी दुनिया के मुसलमानों के लिए पवित्र स्थल है और उस पवित्र स्थल को उन्हों ने अपवित्र किया है बेगुनाहों का खून बहाकर , इराक की तेल सम्पदा पर कब्जा करना उनका स्वार्थ था और इसीलिए ये झूठी बात को आधार बनाकर ज़ंग लड़ी गयी ।

इराकी राष्ट्रपति स्वर्गीय सद्दाम हुसैन को तो एक बार फांसी दे दी गई और वो एक बार शहीद हो गए । लेकिन बुश तो ईस इराकी जूते से रोज़ थोड़ा थोड़ा मरेंगे लेकिन उनको अगर शर्म है तो, पर मुझे ऐसा नही लगता,
"क्योंकि बुश तो जूता खाकर भी खुश है।"